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अनिल कपूर को जब करने पड़े थे अजीबोगरीब काम, परिवार के साथ एक कमरे की खोली में रहते थे एक्टर


अनिल कपूर (Anil Kapoor) ने अपने परिवार के मुश्किल दिनों को याद किया. एक्टर ने बताया कि वे कैसे एक ‘खोली’ में रहते थे और कैसे उन्होंने किशोर अवस्था में काम करना शुरू किया था. वे अपने पिता के बोझ को कुछ कम करना चाहते थे जो तब बीमारी से जूझ रहे थे.

अनिल कपूर ने एक इंटरव्यू में अपने परिवार की आर्थिक स्थिति का जिक्र किया. एक्टर ने बताया कि वे किशोर अवस्था में ही काम करने लगे थे, ताकि उनके बीमार पिता आराम कर सकें. अनिल फिल्म निर्माता सुरिंदर कपूर के बेटे हैं और उनके दो भाई हैं- बोनी कपूर और संजय कपूर.

अनिल कपूर ने बॉलीवुड बबल को बताया कि जब उन्हें अपने पिता की दिल की बीमारी के बारे में पता चला तो उन्होंने अजीब तरह के काम करना शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा, ‘हमें पता चला कि उन्हें दिल की बीमारी है. उन दिनों दिल की बीमारी बहुत बड़ी बात होती थी. यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था, मैंने कहा कि मुझे अब काम करना शुरू करना है और अपने पिताजी को आराम करने देना है. मैं 17-18 साल का था.’

अनिल कपूर ने किए अजीबोगरीब काम
जब अनिल से पूछा गया कि उन्होंने किस तरह के काम किए थे, तो वे बोले, ‘मैं उन्हें अजीब काम नहीं कहूंगा, क्योंकि मुझे वह काम करना पसंद था. मैंने एक्टर को जगाना, उन्हें एयरपोर्ट से लाना, उन्हें लोकेशन पर छोड़ना, उनकी देखभाल करना जैसे कई काम किए. मैंने इस तरह के सभी अजीबोगरीब काम किए.’

अनिल कपूर ने अपने फिल्मी सफर के बारे में बताया
वे आगे बताते हैं, ‘फिर, मुझे शूट के लिए हार्डवेयर की खरीदारी करने, लोकेशन खोजने और उन्हें बुक करने जैसे काम दिए गए. फिर मुझे कास्टिंग डायरेक्टर बना दिया गया. मैं ‘हम पांच’ का कास्टिंग डायरेक्टर था. पहली बार मेरा नाम उन टाइटल्स में आया, जहां कास्टिंग डायरेक्टर का जिक्र किया जाता है. इसके बाद मैंने एक्टिंग का कोर्स किया. मैं 1977 से 1982 तक कुछ रोल किए थे. मैंने तेलुगु फिल्में कीं और कन्नड़ फिल्में कीं. फिर, ‘वो सात दिन’ में मौका मिला.’

परिवार के साथ एक कमरे की खोली में रहते थे अनिल कपूर
उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक दिक्कतों का भी जिक्र किया, जिसकी वजह से उनके परिवार को पृथ्वीराज कपूर के गैराज में रहना पड़ा था. उन्होंने कहा, ‘ईमानदारी से कहूं तो मेरा वहां जन्म नहीं हुआ था. मेरे मम्मी-पापा वहीं रहे. यह एक तरह का आउटहाउस था. वह चेंबूर में था और वहां से हम तिलक नगर चले आए और एक कमरे की छोटी सी खोली में रहने लगे. एक कमरे में लगभग सात-आठ लोग रहते थे.’

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