Shakeel Bbadayuni Birth Anniversary: हिंदी फिल्मों के मशहूर गीतकार रहें शकील बदायुनी (Shakeel Bbadayuni) की आज जयंती है. जैसा कि नाम से ही साफ है कि उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में 3 अगस्त 1916 में पैदा हुए थे. ‘बैजू बावरा’, ‘मदर इंडिया’, ‘मुगल-ए-आजम’, ‘गंगा जमुना’, ‘मेरे महबूब’ जैसी कई फिल्मों के यादगार गीत शकील ने नौशाद के साथ मिलकर लिखे थे. जिस जमाने में सरकारी नौकरी को बड़ी तरजीह जी जाती थी, उस जमाने में शकील ने लगी लगाई सरकारी अफसर वाली नौकरी सिर्फ इसलिए छोड़ दी क्योंकि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की गलियां रास आने लगी थी. शकील की जयंती पर बताते हैं बदायूं से मुंबई तक के सफर का किस्सा.
दर्द, प्रेम और रोमांस से भरपूर शायरी के लिए मशहूर शकील बदायुनी के शायरी-गीतों में उनकी पैदाइशी इलाके यानी बदायूं की आबो हवा, साहित्य और अदब की झलक मिलती है. हर माता-पिता की तरह शकील के पिता मोहम्मद जमाल भी चाहते थे कि उनके बेटे को बेहतर शिक्षा-दीक्षा मिले. इसलिए शकील को अरबी, उर्दू, पारसी और हिंदी सिखाने के लिए बकायदा टीचर तैनात कर दिया. मजे की बात ये है कि बड़े होने के साथ शकील की दिलचस्पी शायरी में होने लगी,जबकि उनके घर में शायरी का कोई माहौल ही नहीं था.
शकील बदायुनी अपने गीतों की वजह से आज भी याद किए जाते हैं.
AMU में शकील को मिला बड़ा मंच
कहते हैं कि शकील के एक दूर के रिश्तेदार शेरो-शायरी किया करते थे. चूंकि शकील की भी दिलचस्पी थी तो उन्होंने उनका साथ पकड़ा और शायरी करने लगे. अपने इलाके में शायरी वजह से शकील को पहचान मिलने लगी. आगे की पढ़ाई के लिए अब्बा हुजूर ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला करवा दिया. यहां उनके शौक को फलने-फूलने का खूब मौका मिला. शकील मुशायरों में आए दिन शिरकत किया करते थे.
पढ़ाई पूरी होते ही बन गए सरकारी अफसर
पढ़ाई पूरी करते ही शकील सरकारी मुलाजिम बन गए. सप्लाई ऑफिसर के तौर पर दिल्ली में नियुक्ति हुई. लेकिन यहां भी शौक छूटा नहीं बल्कि मुशायरों में शिरकत करने का दायरा और बढ़ गया. शकील की शायरी में जमाना था न फसाना था..सिर्फ दर्द और रोमांस था. धीरे-धीरे शकील ने खुद को फिल्मी दुनिया में हाथ आजमाने के लिए तैयार कर लिया. दिल्ली में करीब 4 साल की नौकरी करने के बाद इस्तीफा देकर मुंबई जाने का फैसला कर लिया, हालांकि रिस्क बड़ा था लेकिन शकील को खुद पर भरोसा था.
शकील की दर्द भरी शायरी सुन नौशाद हुए खुश
साल 1944 में शकील नौकरी छोड़ मुंबई पहुंच गए और यहां उनकी मुलाकात संगीतकार नौशाद से हुई. नौशाद ने शकील का इम्तिहान लेने के लिए कहा कुछ सुनाइए. शकील ने सुनाया ‘हम दर्द का अफसाना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे’. दो लाइन की शायरी सुना शकील ने नौशाद को ऐसा खुश किया कि उन्हें अपना मुरीद बना लिया. इसके बाद तो इनकी जोड़ी एक साथ जो बनी करीब 20-25 साल तक साथ-साथ फिल्मी गीत रचती रही.
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शकील के लिखे गीत आज भी मशहूर
काम के साथ-साथ शकील और नौशाद की दोस्ती भी गहरी होती गई. करीब 25 साल तक नौशाद ने अपने अधिकतर गानों के लिए शकील भर ही भरोसा किया. इस जोड़ी ने बेहतरीन गीत-संगीत हिंदी सिनेमा को दिया. मोहब्बत की दास्तां लिखने वाला बेहतरीन गीतकार का 20 अप्रैल 1970 में निधन हो गया,लेकिन अपने गीतों की वजह से शकील आज भी संगीतप्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं.
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Tags: Birth anniversary, Entertainment Throwback, Lyricist, Music
FIRST PUBLISHED : August 03, 2022, 06:00 IST